समीर की पलके डबडबा आयी..
तक़दीर बनाने वाले, तूने भी हद कर दी....
तक़दीर में किसी का नाम लिखा और
दिल में चाहत किसी और की भर दी....!!
दिल में जो आया वो लिख दिया.......कभी मिलन , कभी जुदाई लिख दिया
पहली बार मिले थे जहाँ हम …उन राहों का नाम मंजिल लिख दिया
किया तूने तार - तार मेरा दामन …जा मैंने भी तुझे बेवफा लिख दिया ….
इश्क का जूनून था या दीवानापन …जो अपनी साँसों को तेरे नाम लिख दिया
तेरी जुदाई है अब मुकद्दर मेरा इस जिंदगी का नाम इंतजार लिख दिया
दर्दे मोहब्बत के सिवा शायरी है क्या...जा तेरा नाम हमने ग़ज़ल लिख दिया
दफ़न हो गई हर आरजू सीने में किसी ने जब से तुझे सनम लिख दिया
जुबांन से नाम लेते है,
आँखों से आंसू छलक जाते हैं ....
कभी हज़ारों बातें किया करते थे.....
आज एक बात के लिए हम तरस जाते हैं.../
उसे जब याद आएगा वो पहली बार का मिलना..
तो पल पल याद रखेगा, या सब कुछ भूल जायेगा.
उसे जब याद आएगा, गए मौसम का हर लम्हा..
तो खुद ही रो पड़ेगा वो, या खुद ही मुस्कुराएगा.
उसे जब याद आएगा के सावन लौट आया है..
बुला लेगा वो मुझको, या खुद ही लौट आयेगा.
उसे जब याद आएगा मै कैसे मुस्कुराता था..
तो आँखे मुस्कुरायेंगी , या दामन भीग जायेगा.
उसे जब याद आएगा मै कैसे नाम लेता था..
तो मेरा नाम लिखेगा, या अपना भी मिटाएगा .
उसे जब याद आएगा मेरा चलना, मेरा फिरना..
तो राह में खार बोयेगा, या फिर पलके बिछाएगा.
उसे जब याद आएगा मेरा मुड़ के चले जाना..
तो बंद रखेगा दरवाजे , या फिर राहे सजाएगा.
उसे जब याद आएगा मै कैसा शख्स हूँ..
ताल्लुक खत्म कर देगा या रिश्ता निभायेगा .../
उसे जब याद आएगा.......................................
ख्वाब था, तुमको नाम ले कर बहुत बार बुलाया
ख्वाब था, तुम अपना नाम मेरी जुबान से सुन कर खुश होती रही
ख्वाब था, तुम मेरे पास आ कर, मेरे बालो में अपनी उंगलिया फिराती रही, मुस्कुराती रही
ख्वाब था, तुमको मैंने अपने सीने से लगाने की कोशिश करी
खवाब था, टूट गया... बांहे खाली थी, लेकिन आंखे भरी हुई
ख़याल था, जो मिला नही .....
पर ये दिल को क्या हुआ ....
कितना असल था तेरा कल रात ख्वाब में आना...
कभी कभी जब मै बैठ जाता हूँ अपनी 'यादों' के सामने, छोटे से दायरे में
वो घूर के देखती है मुझको ...........
एक 'याद' आगे आती है, छु के पेशानी पूछती है
" बताओ अगर दुःख है सोच में कोई तो, मै पास बैठू, मदद करू और सुलझा दू उलझने तुम्हारी ?"
"उदास लगते हो" , एक कहती है पास आकर
"जो कह नहीं सकते तुम किसी को, तो मेरे कानो में डाल दो राज अपनी सरगोशियों के"
भड़क के कहती है एक नाराज 'याद' मुझसे
"मै कब तक अपनी आँखों मे लूंगी तुम्हारी आँखों का खारा पानी "
एक और छोटी सी 'याद' कहती है..
" पहले भी कह चुकी हूँ तुझे, जिंदगी की चढ़ान चड़ते अगर तेरी साँसे फूल
जाये, तो मेरे कंधे पे रख दे कुछ बोझ , मै उठा लू "
वो चुप सी एक 'याद' पीछे बैठी जो टकटकी बांधे देखती रहती है मुझे बस..
ना जाने क्या है की उसकी आँखों का रंग तुम पर चला गया है ....
कभी - कभी जब मै बैठ जाता हूँ अपनी 'यादों' के सामने, छोटे से दायरे में
दिल ने बहुत कुछ जला के देख लिया.
और क्या देखने को बाक़ी है
आप से दिल लगा के देख लिया
वो मेरे हो के भी मेरे ना हुए
उनको अपना बना के देख लिया.
आज उनकी नज़र में कुछ हमने
सबकी नज़रें बचा के देख लिया.
आस उस दर से टूटती ही नहीं
जा के देखा, ना जा के देख लिया.
- 'फ़ैज़'
क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रता था
तुम से ये कैसा रिश्ता है...ना मिलने का ..ना बिछड़ने का .../
.
मेरी खुशबु संभाल कर रखना, दिल पे काबू संभाल कर रखना. ...
तेरे सीने से लग के रोये थे हम, मेरे आंसू संभाल कर रखना.../
आओ फिर किसी दर्द को सहला कर, सूजा ले आँखे ,
फिर किसी दुखती हुई रग से छुआ दे नश्तर ,
या किसी भूली हुई राह पे मुड़ कर एक बार ,
नाम ले कर किसी हमनाम को आवाज ही दे ले ..../
मेरा मानना है की सच्ची निजात यही है की आपको आपके गुनाह की फ़िक्र भलाई की तरफ ले जाए....
मै जानता हूँ आखिरकार भगवान् माफ़ करेगा...
अब मैंने एक बात समझी है , अब इस आखिरी ख्याल से मुझे इस बार कोई दर्द नहीं हुआ !अब समझ में आया, माफ़ कर देने की शुरुआत इसी तरह होती है | फिर से जी उठने के शोर शराबे के साथ नहीं.......
बल्कि अपनी चीजो को दर्द के साथ समेटते हुए | उसे बांधते हुए और आधी रात को अपने करीबी लोगो से चुपचाप दूर सिसकते हुए |
इस बार जब वह छोटी सी बच्ची
मेरे पास अपनी खरोंच लेकर आएगी
मैं उसे फू-फू करके नहीं बहलाऊंगा
पनपने दूंगा उसकी टीस को
इस बार नहीं
इस बार जब मैं चेहरों पर दर्द लिखूंगा
नहीं गाऊंगा गीत पीड़ा भुला देने वाले
दर्द को रिसने दूंगा
उतरने दूंगा गहरे
इस बार नहीं
इस बार मैं ना मरहम लगाऊंगा
ना ही उठाऊंगा रुई के फाहे
और ना ही कहूंगा कि तुम आंखे बंद करलो,
गर्दन उधर कर लो मैं दवा लगाता हूं
देखने दूंगा सबको
हम सबको
खुले नंगे घाव
इस बार नहीं
इस बार जब उलझनें देखूंगा,
छटपटाहट देखूंगा
नहीं दौड़ूंगा उलझी डोर लपेटने
उलझने दूंगा जब तक उलझ सके
इस बार नहीं
इस बार कर्म का हवाला दे कर नहीं उठाऊंगा औज़ार
नहीं करूंगा फिर से एक नई शुरुआत
नहीं बनूंगा मिसाल एक कर्मयोगी की
नहीं आने दूंगा ज़िंदगी को आसानी से पटरी पर
उतरने दूंगा उसे कीचड़ में, टेढ़े-मेढ़े रास्तों पे
नहीं सूखने दूंगा दीवारों पर लगा खून
हल्का नहीं पड़ने दूंगा उसका रंग
इस बार नहीं बनने दूंगा उसे इतना लाचार
की पान की पीक और खून का फ़र्क ही ख़त्म हो जाए
इस बार नहीं
इस बार घावों को देखना है
गौर से
थोड़ा लंबे वक्त तक
कुछ फ़ैसले
और उसके बाद हौसले
कहीं तो शुरुआत करनी ही होगी
इस बार यही तय किया है
-
प्रसून जोशी
जहाँ चलती मेरी गुड़िया रानी
बजते घुंघुरू पाँव में
आ लाली मेरी बाँहों में ।
हर पल तुमको खुश रखू
हर खुशिया पहनाऊ
जो तू मांगे हीरे मोती
अगर मिले तो लाऊ
लाली मेरी खुशिया बिखराए
आजा धूप से छाह में
आ लाली मेरी बांहों में
हर खुशिया उपहार मिले तुझे
बस जा मेरी आशाओं में
आ लाली मेरी बाहों में
लोग कहेगे अपने मुह से
मेरा सपना सच्चा है
रोशन होगा नाम हमारा
लोग कहे मेरा बच्चा है
जहाँ चलती मेरी गुड़िया रानी
बजते घुंघुरू पाँव में
आ लाली मेरी बाँहों में
पूछ लो खुदा से आपके लिए ही दुआ मांगी ,
पूछ लो हवा से आपके लिए ही फिजा मांगी ।
आपने की जितनी भी गलतिया ,
हमने दुआ में अपने लिए उतनी ही सजा मांगी ।
खुदा किसी को किसी पे फ़िदा ना करे ,
करे तो क़यामत तक जुदा ना करे ,
यह माना की कोई मरता नही जुदाई में ,
लेकिन जी भी तो नही पता तन्हाई में ...
वो कहते है मजबूर है हम ,
ना चाहते हुए भी तुमसे दूर है हम ,
चुरा ली उन्होंने धड़कने भी हमारी ,
फिर भी कहते है बेकसूर है हम !
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कुछ रिश्ते अनजाने में हो जाते है ,
पहले दिल, फिर ज़िन्दगी से जुड़ जाते है ,
कहते है उस दौर को दोस्ती ,
जिस में दिल से दिल ना जाने कब जुड़ जाते है !